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Kavita Kosh से
मैं रंगों से हो कर
रंगों में गया हूँ
रेखाओं में समाया हूँ
यह संयोजन नहीं
सन्नाटा है
नहीं, सन्नाटे का रंग-दर्शन है
जहाँ मैं हूँ
मैं नहीं हूँ
कहाँ गुम हो गया है मेरा शब्द
क्या शब्द से बाहर है
यह सन्नाटा ?
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