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सन्नाटा / नरेन्द्र मोहन

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'''{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार : =नरेन्द्र मोहन''' }}{{KKCatKavita‎}}<poem>
मैं रंगों से हो कर
 
रंगों में गया हूँ
 रेखओं रेखाओं से निकल कर  
रेखाओं में समाया हूँ
 
यह संयोजन नहीं
 
सन्नाटा है
 
नहीं, सन्नाटे का रंग-दर्शन है
 
जहाँ मैं हूँ
 
मैं नहीं हूँ
 
कहाँ गुम हो गया है मेरा शब्द
 
क्या शब्द से बाहर है
 
यह सन्नाटा ?
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