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|रचनाकार=अली सरदार जाफ़री
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'''दिल और शिकस्ता-ए-दिल'''
 
वफ़ा-पैकर थी वो लेकिन, वफ़ा नाआशना निकली
वो नग़्मा थी, शिकस्ते-शीशःए-दिल की सदा निकली
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