भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

छिपकली की आवाज़ / त्रिलोचन

995 bytes added, 04:11, 6 नवम्बर 2009
नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=त्रिलोचन }}<poem>छिपकली घरों के अंदर ही रहती है, वहा…
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=त्रिलोचन
}}<poem>छिपकली घरों के अंदर ही
रहती है,
वहाँ उसे रक्षा और आहार भी
मिलता है।
मनबहलाव के लिए भी कभी
घर से बाहर जाते उसे कम देखा गया

बहुत से कीट पतंग उस के आहार में
नहीं आते
घर के भीतर ही उस को काम भर का
मिल जाता है, घर भी थोडा बहुत
साफ रहा करता है।

जब उसे कोई चिंता नहीं होती
तभी वह कट, कट अवाज़ करती है
जैसे दो लकड़ियाँ आपस में टकरा कर
रह गई हों, बहुत मंद स्वर में।

22.09.2002</poem>
750
edits