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{{KKRachna
|रचनाकार=अली सरदार जाफ़री
|संग्रह=मेरा सफ़र / अली सरदार जाफ़री
}}
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<poem>
मेरे दरवाज़े से अब चाँद को रुख़्सत <ref>विदा कर दो</ref> कर दो
साथ आया है तुम्हारे जो तुम्हारे घर से
अपने माथे से हटा दो यह चमकता हुआ ताज
एक मुद्दत से तुम्हारे ही लिए रक्खा है
मेरे जलते हुए सीने का दहकता हुआ चाँद
दिले-ख़ूँ-गश्ता<ref>ख़ून में लतलथ-पत पथ दिल</ref> का हँसता हुआ ख़ुश-रंग गुलाब{{KKMeaning}}
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