1,266 bytes added,
03:29, 7 नवम्बर 2009 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=बशीर बद्र
|संग्रह=आस / बशीर बद्र
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>
तुम ने देखा किधर गये तारे
किसकी आवाज़ पर गये तारे
ये कहीं शहर-ए-आरज़ू तो नहीं
चलते-चलते ठहर गये तारे
कब से है आँख गोद फैलाये
झील में क्यों उतर गये तारे
दूर तक नक़्श-ए-पावे नूर नहीं
जाने किस रह गुज़र गये तारे
उफ़ ये साये अन्धेरे सन्नाटे
जाने किस के नगर गये तारे
आज आसार-ए-सुबह से पहले
वादियों में उतर गये तारे
सहमे-सहमे बुझे-बुझे मग़मूम
सर झुकाये गुज़र गये तारे
’बद्र’ कुछ वाँ की ख़बर भी है तुम्हें
आँचलों पर बिखर गये तारे
(१९५८)
</poem>