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|रचनाकार=बशीर बद्र
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तुम ने देखा किधर गये तारे
किसकी आवाज़ पर गये तारे

ये कहीं शहर-ए-आरज़ू तो नहीं
चलते-चलते ठहर गये तारे

कब से है आँख गोद फैलाये
झील में क्यों उतर गये तारे

दूर तक नक़्श-ए-पावे नूर नहीं
जाने किस रह गुज़र गये तारे

उफ़ ये साये अन्धेरे सन्नाटे
जाने किस के नगर गये तारे

आज आसार-ए-सुबह से पहले
वादियों में उतर गये तारे

सहमे-सहमे बुझे-बुझे मग़मूम
सर झुकाये गुज़र गये तारे

’बद्र’ कुछ वाँ की ख़बर भी है तुम्हें
आँचलों पर बिखर गये तारे

(१९५८)
</poem>