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{{KKRachna
|रचनाकार=बशीर बद्र
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सात रंगों के शामियाने हैं
दिल के मौसम बड़े सुहाने हैं

कोई तदबीर भूलने की नहीं
याद आने के सौ बहाने हैं

दिल की बस्ती अभी कहाँ बदली
ये मौहल्ले बहुत पुराने हैं

हक़ हमारा नहीं दरख़्तों पर
ये परिन्दों के आशियाने हैं

इल्मो-हिक़मत, सियासतो-मज़हब
अपने अपने शराबख़ाने हैं

धूप का प्यार ख़ूबसूरत है
आग के फूल भी सुहाने हैं

(१९९६)
</poem>