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{{KKRachna
|रचनाकार=त्रिलोचन
}}<poem>राम और लक्षमण दोनों ही सीता की खोज में
लगे हैं। रितु शिशिर की है। सामने ताल है। ताल में
बगला है। राम नें काफ़ी देर देखा, एक ही पाँव पर
खडा है वह बगला। लक्षमण, देखोतो..तपस्वी जान
पड़ता है।
लक्षमण क्या बोले, मालूम नहीं। मछलियों
नें राम के विचार ध्यान से सुने और राम को सुना कर
कहा-उस की तपस्या का हाल हम जानते हैं,
उसकी तपस्या हमें जाति-कुल सहित विनष्ट कर
देने में है।
2.10.2009</poem>
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|रचनाकार=त्रिलोचन
}}<poem>राम और लक्षमण दोनों ही सीता की खोज में
लगे हैं। रितु शिशिर की है। सामने ताल है। ताल में
बगला है। राम नें काफ़ी देर देखा, एक ही पाँव पर
खडा है वह बगला। लक्षमण, देखोतो..तपस्वी जान
पड़ता है।
लक्षमण क्या बोले, मालूम नहीं। मछलियों
नें राम के विचार ध्यान से सुने और राम को सुना कर
कहा-उस की तपस्या का हाल हम जानते हैं,
उसकी तपस्या हमें जाति-कुल सहित विनष्ट कर
देने में है।
2.10.2009</poem>