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16:18, 7 नवम्बर 2009 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=बशीर बद्र
|संग्रह=आस / बशीर बद्र
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<poem>
सर दर्द जैसे नींद के सीने पे सो गया
इन फूल जैसे हाथों ने माथा जुँही छुआ
इक लड़की एक लड़के के काँधे पे सोई थी
मैं उजली धुँधली यादों के कुहरे में खो गया
सन्नाटे आए, दरज़ों में झाँका, चले गए
गर्मी की छुट्टियाँ थी, वहाँ कोई भी न था
टहनी गुलाब की मिरे सीने से लग गई
झटके के साथ कार का रुकना ग़जब हुआ
(१९६२)
</poem>