[[Category:सोहनलाल द्विवेदी]][[Category:कविताएँ]]{{KKGlobal}}{{KKSandarbhKKRachna|लेखकरचनाकार=सोहनलाल द्विवेदी|पुस्तक=|प्रकाशक=|वर्ष=|पृष्ठ=
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यह है भारत का शुभ्र मुकुट
यह है भारत का उच्च भाल,
सामने अचल जो खड़ा हुआ
हिमगिरि विशाल, गिरिवर विशाल!
यह है भारत का शुभ्र मुकुट<br>कितना उज्ज्वल, कितना शीतल कितना सुन्दर इसका स्वरूप? यह है भारत का उच्च भाल,<br>चूम रहा गगनांगन को सामने अचल जो खड़ा हुआ<br>हिमगिरि विशाल, गिरिवर विशालइसका उन्नत मस्तक अनूप!<br><br>
कितना उज्ज्वलहै मानसरोवर यहीं कहीं जिसमें मोती चुगते मराल, कितना शीतल<br>कितना सुन्दर इसका स्वरूप?<br>है चूम रहा गगनांगन को<br>हैं यहीं कहीं कैलास शिखर इसका उन्नत मस्तक अनूपजिसमें रहते शंकर कृपाल!<br><br>
युग युग से यह है मानसरोवर यहीं कहीं<br>अचल खड़ा जिसमें मोती चुगते मराल,<br>बनकर स्वदेश का शुभ्र छत्र! इसके अँचल में बहती हैं यहीं कहीं कैलास शिखर<br>जिसमें रहते शंकर कृपालगंगा सजकर नवफूल पत्र!<br><br>
युग युग से यह है अचल खड़ा<br>बनकर स्वदेश का शुभ्र छत्र!<br>इसके अँचल इस जगती में बहती जितने गिरि हैं<br>गंगा सजकर नवफूल पत्रसब झुक करते इसको प्रणाम, गिरिराज यही, नगराज यही जननी का गौरव गर्व–धाम!<br><br>
इस जगती में जितने गिरि हैं<br>सब झुक करते इसको प्रणाम,<br>गिरिराज यही, नगराज यही<br>जननी का गौरव गर्व–धाम!<br><br> इस पार हमारा भारत है,<br>उस पार चीन–जापान देश<br>मध्यस्थ खड़ा है दोनों में <br> एशिया खंड का यह नगेश! <br><br/poem>