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{{KKRachna
|रचनाकार=अशोक पांडे
}} {{KKCatKavita}}<poem> वक़्त के साथ-साथ भरता गया पापों का घड़ा <br>तो प्लास्टिक भी बना टनों के हिसाब से <br>यहाँ-वहाँ इतना जमा हो गया प्लास्टिक कि दही जैसी चीज़ का स्वाद भी <br>मिटटी के कुल्हडों से <br>बेस्वाद होता बंद हो गया घटिया प्लास्टिक की <br>रबर बैंड लगी थैलियों में <br><br>
प्लास्टिक लेकर आया भावहीन चेहरे और शातिर दिमाग <br>और जलने की ऐसी दुर्गन्ध <br>जो बस समय बीतने पर ही जायेगी <br><br>
प्लास्टिक आया तो आये अधनंगे आवारा बच्चे <br>बड़ी-बड़ी गठरियाँ लेकर <br>दुनिया के चालाक लोगों के लिए <br>गंद के ढेरों को उलट-पुलट करने <br><br>
चालाक लोग भूख की मशीन में डाल कर <br>कूड़े को बदल देंगे <br>
नए प्लास्टिक में !
</poem>
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