|संग्रह=कहीं नहीं वहीं / अशोक वाजपेयी
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तुम जहाँ कहो
वहाँ चले जायेंगे
दूसरे मकान में
अँधेरे भविष्य में
न कहीं पहुँचने वाली ट्रेन में
तुम अपना बसता-बोरिया उठाकररद्दी के बोझ साजीवन को पीठ पर लादकरजहाँ कहो<br>वहाँ चले जायेंगे<br>दूसरे मकान में<br>अँधेरे भविष्य में<br>वापस इस शहरन कहीं पहुँचने वाली ट्रेन इस चौगान, इस आँगन में<br><br>नहीं आयेंगे
अपना बसता-बोरिया उठाकर<br>रद्दी के बोझ सा<br>जीवन को पीठ पर लादकर<br>जहाँ कहो वहाँ चले जायेंगे<br>वापस इस शहर<br>इस चौगान, इस आँगन में नहीं आयेंगे<br><br> वहीं पक्षी बनेंगे, वृक्ष बनेंगे<br>फूल या शब्द बन जायेंगे<br>जहाँ तुम कभी खुद नहीं आना चाहोगे<br>वहाँ तुम कहो तो<br>चले जायेंगे<br/poem>