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अन्त के बाद-1 / अशोक वाजपेयी

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|संग्रह=कहीं नहीं वहीं / अशोक वाजपेयी
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<poem>
अन्त के बाद
हम चुपचाप नहीं बैठेंगे।
अन्त के बाद<br>फिर झगड़ेंगे,हम चुपचाप नहीं बैठेंगे।<br><br>फिर खोजेंगे,फिर सीमा लाँघेंगे
फिर झगड़ेंगे,<br>क्षिति जल पावकगगन समीर सेफिर खोजेंगेकहेंगे-चलोहमको रूप दो,<br>फिर सीमा लाँघेंगे<br><br>आकर दो !
क्षिति जल पावक<br>वही जो पहले थागगन समीर से<br>फिर कहेंगेवही-<br>चलो<br>जिसके बारे मेंहमको रूप दो,<br>अन्त को भ्रम हैआकर दो !<br><br>कि उसने सदा के लिए मिटा दिया।
वही जो पहले था<br>अन्त के बादवहीहम समाप्त नहीं होंगे-<br>जिसके बारे में<br>यहीं जीवन के आसपासअन्त को भ्रम है<br>मँडरायेंगे-कि उसने सदा के लिए मिटा दिया।<br><br>यहीं खिलेंगे गन्ध बनकर,बहेंगे हवा बनकर,छायेंगे स्मृति बनकर।
अन्त के बाद<br>हम समाप्त नहीं होंगे-<br>यहीं जीवन के आसपास<br>मँडरायेंगे-<br>यहीं खिलेंगे गन्ध बनकर,<br>बहेंगे हवा बनकर,<br>छायेंगे स्मृति बनकर।<br><br> अन्तत: <br>हम अन्त को बरकाकर<br>फिर यहीं आयेंगे-<br>अन्त के बाद<br>हम चुपचाप नहीं बैठेंगे।<br/poem>
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