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|संग्रह=कहीं नहीं वहीं / अशोक वाजपेयी
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अन्त के बाद
कुछ नहीं होगा
न वापसी
न रूपान्तर
न फिर कोई आरंभ।
अन्त के बाद<br>कुछ नहीं होगा<br>न वापसी<br>न रूपान्तर<br>न फिर कोई आरंभ।<br> अन्त के बाद<br>सिर्फ अन्त होगा।<br>न देह का चकित चन्द्रोदय,<br>न आत्मा का अँधेरा विषाद,<br>न प्रेम का सूर्यस्मरण।<br>न थोड़े से दूध की हलकी सी चाय,<br>न बटनों के आकार से<br>छोटे बन गये काजों की झुँझलाहट।<br>न शब्दों के पंचवृक्ष,<br>न मौन की पुष्करिणी,<br>न अधेड़ दुष्टताएँ होंगी<br>न वनप्रान्तर में नीरव गिरते नीलपंख।<br>न निष्प्रभ देवता होंगे,<br>न पताकाएँ फहरते लफंगे।<br>अन्त के बाद<br>हमारे लिए कुछ नहीं होगा-<br>उन्हीं के लिए सब होगा<br>जिनके लिए अन्त नहीं होगा।<br>अन्त के बाद<br>सिर्फ<br>अन्त होगा,<br>हमारे लिए।<br/poem>