भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

नायकी कान्हड़ा / असद ज़ैदी

17 bytes added, 13:26, 8 नवम्बर 2009
|रचनाकार=असद ज़ैदी
}}
{{KKCatKavita}}<poem>
नायकी कान्हड़ा की द्रुत गत
 
सुनकर मैं झाँकता हूँ
 
एक सूने मकान के अन्दर
 
दालान खाली था
 
जीने पर जमा था
 
कई मौसमों का गुबार
 
अन्दर घुसता हूँ
 
तो आवाज़ बन्द हो जाती है
 
आती सुनायी देती है
 
खाली टेप की-सी घिसघिसाहट
 
यहाँ न हवा थी
 
न कोई बेकल आत्मा
 
शायद था मेरी
 
अपनी ही पोशाक का हाहाकार।
</poem>
Delete, KKSahayogi, Mover, Protect, Reupload, Uploader
19,333
edits