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उस ज़माने में / असद ज़ैदी

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|संग्रह=बहनें और अन्य कविताएँ / असद ज़ैदी
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यह जो शहर यहाँ है
 
इसका क़िला गिर सकता है
 
कारें रुक सकती हैं किसी वक़्त
 
फिसल सकते हैं महाराजा
 
यहीं कनाट प्लेस में
 
एक धुँआ उठ सकता है
 
और संभव है जब तक धुँआ हवा में घुले,
 
हमारी संसद वहाँ न हो
 
धुँधला पड़ सकता है यमुना का बहाव
 
सड़कें भागती और अदृश्य होती हो सकती हैं
 
लट्टू बुझ सकते हैं
 
दर्द के बढ़ते-बढ़ते फट सकता है सर
 
ज़मीन कहीं भी जा सकती है यहाँ से सरककर
 
नहीं जानते यहाँ के दूरदर्शी लोग कि ज़माना कितनी दूर है
 
जानते हैं वे
 
जिन्होंने देखा है इस शहर को बहुत दूर से
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