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[[Category:ग़ज़ल]]
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तुझे इज़हार-ए-मुहब्बत से अगर नफ़रत है
तूने होठों के लरज़ने को तो रोका होता
तुझे इज़हारबे-ए-मुहब्बत नियाज़ी से अगर नफ़रत है <br>, मगर कांपती आवाज़ के साथ तूने होठों घबरा के लरज़ने को तो रोका मिरा नाम न पूछा होता <br><br>
बेतेरे बस में थी अगर मशाल-नियाज़ी से, मगर कांपती आवाज़ के साथ <br>ए-जज़्बात की लौ तूने घबरा के मिरा नाम तेरे रुख्सार में गुलज़ार न पूछा भड़का होता <br><br>
तेरे बस में थी अगर मशालयूं तो मुझसे हुई सिर्फ़ आब-एओ-जज़्बात हवा की लौ <br>बातें तेरे रुख्सार में गुलज़ार न भड़का अपने टूटे हुए फ़िरक़ों को तो परखा होता <br><br>
यूं तो मुझसे हुई सिर्फ़ आब-ओ-हवा की बातें <br>अपने टूटे हुए फ़िरक़ों को तो परखा होता <br><br> यूं ही बेवजह ठिठकने की ज़रूरत क्या थी <br>दम-ए-रुख्सत में अगर याद न आया होता <br><br/poem>