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बाँस की उपेक्षा / त्रिलोचन

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{{KKRachna
|रचनाकार=त्रिलोचन
}}<poem>रिमझिम रिमझिम मेहा बरसै चालै ठंडी पौन
स्याम राम दौउ कामरि ओढे चले आपने भौन।

दोनों गाय चराने गोकुल से दूर दूर तक जाते थे।
पानी बरसने पर कामरी ओढ कर घर लौटते होंगे। एसे
में बेतरह भीग जाते होंगे।

हमारे इलाके में बॉस से छातों का चलन था।
उसका उपयोग करने वाला भीगता नहीं था। अच्छी
जाति के बाँस की तीलियाँ बना कर गोल आकार के गत्ते
की जगह ढाक के पत्ते जड़ देते थे। चरवाहे इसी का इस्तेमाल
करते थे। हाँ, चरवाहे किशोर होते थे।

अब बाँस के छाते देखने में नहीं आते, उन की जगह
कपडे के चल रहे हैं।

बाँस और बाँस की अनेक कारीगरी दिनों दिन
घट रही है।

25.10.2002</poem>
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