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{{KKRachna
|रचनाकार=त्रिलोचन
}}<poem>काली घटा गगन में छाई मंद हुआ भूतल पर ताप
रिमझिम रिमझिम पानी बरसा इधर उधर है उस की छाप॥
पवन झोरता है डालों को टपक रहे हैं जामुन आम
बच्चों, दौड़ो,आम उठाओ, आज जामुनों का क्या काम॥
दीन हीन बच्चे ही जामुन बीन रहे पा कर संकेत
आम समीप गिरे न छुवेंगे भली भाँति है उनको चेत॥
रंग रंग के किस्म किस्म के एक एक भूरूह के नाम
समझ बूझ से रखे गए हैं फल ही पहुँच पाएँगे धाम॥
कच्चे पके आम जैसे हों इनका होता है उपयोग
खाएँ और खिलाएँ सब को अगर बाग् का है संजोग॥
30.10.2002</poem>
{{KKRachna
|रचनाकार=त्रिलोचन
}}<poem>काली घटा गगन में छाई मंद हुआ भूतल पर ताप
रिमझिम रिमझिम पानी बरसा इधर उधर है उस की छाप॥
पवन झोरता है डालों को टपक रहे हैं जामुन आम
बच्चों, दौड़ो,आम उठाओ, आज जामुनों का क्या काम॥
दीन हीन बच्चे ही जामुन बीन रहे पा कर संकेत
आम समीप गिरे न छुवेंगे भली भाँति है उनको चेत॥
रंग रंग के किस्म किस्म के एक एक भूरूह के नाम
समझ बूझ से रखे गए हैं फल ही पहुँच पाएँगे धाम॥
कच्चे पके आम जैसे हों इनका होता है उपयोग
खाएँ और खिलाएँ सब को अगर बाग् का है संजोग॥
30.10.2002</poem>