{{KKRachna
|रचनाकार= इब्ने इंशा
}}{{KKCatKavita}}<poem>ऐ मुँह मोड़ के जाने वाली, जाते में मुसकाती जा<br>मन नगरी की उजड़ी गलियाँ सूने धाम बसाती जा<br><br>
दीवानों का रूप न धारें या धारें बतलाती जा<br>मारें हमें या ईंट न मारें लोगों से फ़रमाती जा<br><br>
और बहुत से रिश्ते तेरे और बहुत से तेरे नाम<br>आज तो एक हमारे रिश्ते मेहबूबा कहलाती जा<br><br>
पूरे चाँद की रात वो सागर जिस सागर का ओर न छोर <br>या हम आज डुबो दें तुझको या तू हमें बचाती जा<br><br>
हम लोगों की आँखें पलकें राहों में कुछ और नहीं<br>शरमाती घबराती गोरी इतराती इठलाती जा <br><br>
दिलवालों की दूर पहुँच है ज़ाहिर की औक़ात न देख <br>एक नज़र बख़शिश में दे के लाख सवाब कमाती जा<br><br>
और तो फ़ैज़ नहीं कुछ तुझसे ऐ बेहासिल ऐ बेमेहर<br>
इंशाजी से नज़में ग़ज़लें गीत कबत लिखवाती जा
</poem>