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{{KKCatNazm}}<poem>
क्यों मेरे साथ-साथ आता है ?
मेरी मंज़िल है बेनिशाँ नादाँ
साथ मेरा-तेरा कहाँ नादाँ
थक गए पाँव पड़ गए छाले
मंज़िलें टिमटिमा रही हैं - दूर
बस्तियाँ और जा रही हैं - दूर
मैं अकेला चलूँगा ऎ साए
कौन अहदे-वफ़ा निभाता है
क्यों मेरे साथ-साथ आता है
तू अभी जा मिलेगा सायों में
मैं कहाँ जाऊँ मैं कहाँ जाऊँ
किसकी आग़ोश में अमाँ पाऊँ
(रचनाकाल : 1944)
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