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फूल, चाँद और रात / इला कुमार

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|संग्रह= जिद मछली की / इला कुमार
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अब कोई नहीं लिखता
उसकी प्रकृति है
कोई नहीं करता प्रकृति की बात
फूल चांद और रात की बात। </poem>
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