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जाना तय है / इला कुमार

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|संग्रह= किन्हीं रात्रियों मे / इला कुमार
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शाम होते ही लौट आई हूँ
 
चिडियों से होड़ लगाकर
 
वहां खाना और पानी नहीं है
 
बुभु क्षा या तितीर्षा का नामोनिशान नहीं
 
आकाश न जाने किसकी छाया के अन्दर उनींदा रहता है
 
उख की अदम्य लालसा अनवरत खीचती हुई
 
उतनी दूर जाकर सुख कहाँ पाऊँगी
 
निर्धूम ज्योति अभी भी अनंत कालखंडों की दुरी पर
 
हजारों साल पहले वेफ प्रतिबिम्बों टेल दबी हुई
 
बीच का समय शुन्य में मिला हुआ
 
जाना तय है
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