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बिना टिकिट के / इसाक अश्क

41 bytes removed, 14:41, 9 नवम्बर 2009
{{KKRachna
|रचनाकार=इसाक अश्क
}} {{KKCatKavita}}{{KKCatNavgeet}}<poem>बिना टिकिट के<br>गंध लिफाफा<br>घर-भीतर तक डाल गया मौसम।<br><br>
रंगों<br>डूबी-<br>दसों दिशाएँ<br>विजन<br>डुलाने-<br>लगी हवाएँ<br>दुनिया से<br>बेखौफ हवा में<br>चुम्बन कई उछाल गया मौसम।<br><br>
दिन <br>सोने की<br>सुघर बाँसुरी<br>लगी<br>फूँकने-<br>फूल-पाँखुरी,<br>प्यासे<br>अधरों पर खुद झुककर<br>
भरी सुराही ढाल गया मौसम।
</poem>
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