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जादह-ओ-मंज़िल जहाँ दोनों हैं एक / आरज़ू लखनवी
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18:47, 9 नवम्बर 2009
|रचनाकार=आरज़ू लखनवी
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जादह-ओ-मंज़िल जहाँ दोनों हैं एक।
उस जगह से मेरा सेहरा शुरू॥
देखा ललचाई निगाहों का मआ़ल।
‘आरज़ू’ लो हो गया परदा शुरू॥
</poem>
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