भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
|रचनाकार = आलोक धन्वा
}}
{{KKCatKavita}}<poem>
समुद्र
तुम्हारे किनारे शरद के हैं
और तुम स्वयं समुद्र सूर्य और नमक के हो
तुम्हारी आवाज़ आंदोलन और गहराई की है
और हवाएँ
जो कई देशों को पार करती हुई
तुम्हारे भीतर पहुँचती हैं
आसमान जैसी
तुम्हें पार करने की इच्छा
अक्सर नहीं होती
भटक जाने का डर बना रहता है !