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15:07, 10 नवम्बर 2009 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=बशीर बद्र
|संग्रह=आस / बशीर बद्र
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<poem>
ख़ुशबू की तरह आया, वो तेज हवाओं में
माँगा था जिसे हमने दिन-रात दुआओं में
तुम छत पे नहीं आए, मैं घर से नहीं निकला
ये चाँद बहुत भटका सावन की घटाओं में
इस शहर में इक लड़की बिल्कुल है ग़ज़ल जैसी
बिजली सी घटाओं में, ख़ुशबू सी हवाओं में
मौसम का इशारा है खुश रहने दो बच्चों को
मासूम मोहब्बत है फूलों की ख़ताओं में
भगवान ही भेजेंगे चावल से भरी थाली
मज़लूम परिन्दों की मासूम सभाओं में
दादा बड़े भोले थे सबसे यही कहते थे
कुछ ज़हर भी होता है अंग्रेज़ी दवाओं में
(१९९८)
</poem>