|रचनाकार=घनानंद
}}<poem>अति सूधो सनेह को मारग है जहाँ नेकु सयानप बाँक नहीं।
तहाँ साँचे चलैं तजि आपनपौ झझकैं झिझकैं कपटी जे निसाँक नहीं॥ घनआनंद प्यारे सुजान सुनौ यहाँ एक तें ते दूसरो आँक नहीं।तुम कौन धौं पाटी पढ़े हौ कहौ लला, मन लेहु पै देहु छटाँक नहीं॥
</poem>