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{{KKRachna
|रचनाकार=त्रिलोचन
}}<poem>इमली की ड़ाल पर
बरेत से लोग झूला डालते हैं
पटरे पर तीन चार जनियाँ
बैठती हैं, गाती हैं कजरियाँ,
झूले पर दोनों ओर
एक एक जनी चढ़ाई पर
पेंग मारने का काम करती हैं
सावन यों सजता है।
इमली में फूल समय पा कर
फ़ल आने लगते हैं
कच्चे होते हैं तभी इक्के दुक्के जन
चखने लगते हैं,
पक जाने पर इन्हें तोड़ कर
घर ले जाते हैं लोग
और मनचाहा रूप इन को देते हैं।
8.11.2002 </poem>
{{KKRachna
|रचनाकार=त्रिलोचन
}}<poem>इमली की ड़ाल पर
बरेत से लोग झूला डालते हैं
पटरे पर तीन चार जनियाँ
बैठती हैं, गाती हैं कजरियाँ,
झूले पर दोनों ओर
एक एक जनी चढ़ाई पर
पेंग मारने का काम करती हैं
सावन यों सजता है।
इमली में फूल समय पा कर
फ़ल आने लगते हैं
कच्चे होते हैं तभी इक्के दुक्के जन
चखने लगते हैं,
पक जाने पर इन्हें तोड़ कर
घर ले जाते हैं लोग
और मनचाहा रूप इन को देते हैं।
8.11.2002 </poem>