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{{KKRachna
|रचनाकार=राजीव रंजन प्रसाद
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}<poem>मैंने मान लिया कि हम एक नहीं हो सकते
मैंने मान लिया कि फर्ज़ का बोझ कंधे से उतार कर तुम
अपनी ज़िन्दगी नहीं जीना चाहती
मैंने यह भी मान लिया कि हमारे रिश्तों का अंत
एक अंत हीन दर्द होगा
लेकिन मेरे चाँद
वह मोड़ जहाँ हम पीठ कर लेंगे
अभी चार कदम की दूरी पर है...
राधा भी कान्हा की नहीं हो सकी थी
लेकिन यह जान कर भी कि
कान्हा किसी मोड पर मुड ही जायेगा
राधा ने कदम थामे तो नहीं थे..

हम साथ हैं तो ज़िंदगी खूबसूरत है
हम साथ होते तो जिन्दगी खूबसूरत होती..
मैं भी आने वाले कल से डरता हूँ
मैं यह भी जानता हूँ कि तुम्हारे बिन
मैं सागर का पंछी हो जाऊंगा
लेकिन मेरे खूबसूरत साथी
ताउम्र हमसफर नहीं कुछ कदम ही सही
साथ साथ चलें हम
सपनों की फसल बोयें
कल जब याद आओ और बहुत याद आओ तुम
तो कोई ख्वाब जो पक कर सुनहला हुआ होगा
कानों में एकाएक गुदगुदी सी कर जायेगा
पुरबा कहेगी मुस्कुरा कर, पागल! आखें क्यों रोती हैं
यादें बेहद मीठी होती हैं..

१९.१०.२०००
</poem>
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