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<poem>
अजीब तर्ज़-ए-मुलाकात अब के बार रही
तुम्हीं थे बदले हुए या मेरी निगाहें थीं
तुम्हारी नजरों से लगता था जैसे मेरे बजाए
तुम्हारे ओहदे की देनें तुम्हें मुबारक थीं
अजीब तर्जसो तुमने मेरा स्वागत उसी तरह से कियाजो अफ्सरान-ए-मुलाकात अब हुकूमत के बार रही<br>ऐतक़ाद में हैतुम्हीं थे बदले हुए या मेरी निगाहें थीं<br>तकल्लुफ़न मेरे नज़दीक आ के बैठ गएतुम्हारी नजरों से लगता था जैसे मेरे बजाएफिर एहतराम<brref>तुम्हारे ओहदे की देनें तुम्हें मुबारक थींआदर<br/ref>से मौसम का ज़िक्र छेड़ दिया
सो तुमने मेरा स्वागत उसी तरह से किया<br>
जो अफ्सरान-ए-हुकूमत के ऐतक़ाद में है<br>
तकल्लुफ़ान मेरे नजदीक आ के बैठ गए<br>
फिर 1एहतराम से मौसम का जिक्र छेड़ दिया<br>
1आदर <br>
कुछ उस के बाद सियासत की बात भी निकली<br>अदब पर भी दो चार तबसरे फ़रमाए<br>मगर तुमने ना हमेशा कि तरह ये पूछा<br>कि वक्त कैसा गुजरता है तेरा जान-ए-हयात ?<br><br>
पहर दिन की 2अज़ीयत अज़ीयत<ref>अत्याचार</ref> में कितनी शिद्दत है<br>उजाड़ रात की तन्हाई क्या क़यामत है<br>शबों की सुस्त रावी का तुझे भी शिकवा है<br>गम-ए-फिराक फिराक़ के किस्से 3निशातनिशात-ए-वस्ल का जिक्र<brref>मिलन की खुशी</ref> का ज़िक्र रवायतें ही सही कोई बात तो करते.....<br/poem2अत्याचार  3मिलन की खुशी{{KKMeaning}}
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