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15:16, 13 नवम्बर 2009 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=सौदा
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<poem>
ढाया मैं तिरे काबे को, तैं मेरा दिल ऐ शैख़
तामीर मैं करूँ उसे, तैं इसको बनावै
ऐ ख़िज़्र, ज़-ख़ुद-रफ़्तगी, क्या तुर्फ़ा सफ़र है
जिसमें कि न भूलें, न कोई राह बतावै
</poem>