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|रचनाकार=सौदा
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हम हैं वारस्ता मुहब्बत की मददगारी से
सबसे आज़ाद हुए दिल की गिरफ़्तारी से
शिकवा है जौरो-जफ़ा का तेरे किसी काफ़िर को
मुझपे गुज़री है सो मेरी ही वफ़ादारी से
पहुँचे गर शहरे-बुताँ में तो परे ऐ ’सौदा’
रहियो बाज़ारे-मुहब्बत की ख़रीदारी से
</poem>