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02:55, 14 नवम्बर 2009 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=भारतेंदु हरिश्चंद्र
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अरी सखि गाज परौ ऐसी लोक-लाज पै, मदन-मोहन संग जान न पाई।
हौं तो झरोखे ठाढ़ी देखत ही कछु, आए इतै में कन्हाई॥
औचक दीठि परी मेरे तन, हँसि कछु बंसी बजाई।
’हरीचंद’ मोहिं बिबस छोड़ि कैं, तन-मन लीनौं संग लाई॥
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