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अब भूल गुलाब में पंकज की,
:अलि कैसे तुझे सुधि आती नहीं!
करते करुणा-घन छांह वहां,
:झुलसाया निदाघ सा दाह नहीं;
मिलती शुचि आँसुओं की सरिता,
:मृगवारि का सिन्धु अथाह नहीं;
हँसता अनुराग का इन्दु सदा,
:छलना की कुहू का निबाह नहीं;
फिरता अलि भूल कहाँ भटका,
:यह प्रेम के देश कि राह नहीं!
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