1,720 bytes added,
15:50, 14 नवम्बर 2009 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=सौदा
}}
<poem>
गदा दस्त-ए-अहले-करम देखते हैं
हम अपना ही दम और क़दम देखते हैं
न देखा जो कुछ जाम में जम ने अपने
सो इक क़तर-ए-मै में हम देखते हैं
ये रंजिश में हमको है बे-इख़्तियारी
तुझे तेरी खाकर क़सम देखते हैं
ग़रज़ कुफ़्र से कुछ न दीं से है मतलब
तमाशा-ए-दैरो-हरम देखते हैं
हुबाबे-लबे-जू हैं कि ऐ बाग़बाँ, हम
चमन को तिरे कोई दम देखते हैं
नविश्ते को मेरे मिटाते हैं रो-रो
मलाइक जो लौहो-क़लम देखते हैं
ख़ुदा दुश्मनों को न वो दिन दिखावे
जो कुछ दोस्त अपने से हम देखते हैं
मिटा जाए है हर्फ़-हर्फ़ आँसुओं से
जो नामा उसे कर रक़म देखते हैं
सितम से किया तूने हमको ये ख़ूगर
करम से तिरे हम सितम देखते हैं
मगर तुझसे रंजीदा-ख़ातिर है ’सौदा’
उसे तेरे कूचे में कम देखते हैं
</poem>