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15:51, 14 नवम्बर 2009 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=सौदा
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जो कि ज़ालिम है वो हरगिज़ फूलता-फलता नहीं
सब्ज़ होते खेत देखा है कभी शमशीर का
सीमो-ज़र के आगे ’सौदा’ कुछ नहीं इन्साँ की क़द्र
ख़ाक ही रहना भला था बल्कि इस अकसीर का
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