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|रचनाकार=सौदा
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तबीअत से फ़रो-माया की शे’रे-तर नहीं होता
जो आबे-चाह का क़तरा है वो गौहर नहीं होता
तलाशे-ख़िज़्र बहरे-मंज़िले-मक़सूद न कर ’सौदा’
कोई ख़ुदरफ़्तगी से राहबर बेहतर नहीं होता
</poem>