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|रचनाकार=भारतेंदु हरिश्चंद्र
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हम तो श्री वल्लभ ही को जानैं।
सेवत वल्लभ-पद-पंकज को, वल्लभ ही को ध्यानैं।
हमरे मात-पिता गुरु वल्लभ, और नहीं उर आनैं।
’हरीचंद’ वल्लभ-पद-बल सों, इन्द्रहु को नहिं मानैं॥
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