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{{KKRachna
|रचनाकार=राजीव रंजन प्रसाद
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}}
{{KKCatKavita}}<poem>वीणा के तार से गीत बजें
मैं गा लूँ जग की पीड़ा माँ

मेरे आँसू, मेरी आहें,
मेरे अपने हैं रहने दो
पलकों के गुल पर ठहर
कभी बहते हैं, बहने दो

सुख की थाती का क्या करना
करने दो दुख को क्रीड़ा माँ
वीणा के तार से गीत बजे
मैं गा लूं जग की पीडा माँ

देखो बिखरी है भूख वहाँ,
परती हैं खेत बारूद भरे
हर लाश है मेरी, कत्ल हुई
मेरे ही नयना झरे झरे

पीड़ा पीड़ा की क्रीड़ा है
हर लूँ, मुझको दो बीड़ा माँ
वीणा के तार से गीत बजे
मैं गा लूं जग की पीड़ा माँ

30.12.1990</poem>
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