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फूल गंधराज के / त्रिलोचन

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{{KKRachna
|रचनाकार=त्रिलोचन
}}<poem>शारदीय आभा बढाते हैं और और
फूल गंधराज के

गाढ़ हरित श्याम दलों में धारे
शुभ्र फूल ओप अधिक बिस्तारे
सुरभित समाज के

दिन की चमक में रंग नीबू का घुला मिला
दृग खींचने में कब चूका
हैं प्रसून आज के।

19.03.2003</poem>
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