लेखक: [[कैलाश गौतम]]{{KKGlobal}}[[Category:{{KKRachna|रचनाकार=कैलाश गौतम]][[Category:कविताएँ]]|संग्रह=}}{{KKCatKavita}}<poem>बच्चू बाबू एम.ए. करके सात साल झख मारे[[Category:गीत]]खेत बेंचकर पढ़े पढ़ाई, उल्लू बने बिचारे
~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*कितनी अर्ज़ी दिए न जाने, कितना फूँके तापेकितनी धूल न जाने फाँके, कितना रस्ता नापे लाई चना कहीं खा लेते, कहीं बेंच पर सोतेबच्चू बाबू हूए छुहारा, झोला ढोते-ढोते उमर अधिक हो गई, नौकरी कहीं नहीं मिल पाईचौपट हुई गिरस्ती, बीबी देने लगी दुहाई बाप कहे आवारा, भाई कहने लगे बिलल्लानाक फुला भौजाई कहती, मरता नहीं निठल्ला ख़ून ग़रम हो गया एक दिन, कब तक करते फाकालोक लाज सब छोड़-छाड़कर, लगे डालने डाका बड़ा रंग है, बड़ा मान है बरस रहा है पैसासारा गाँव यही कहता है बेटा हो तो ऐसा ।</poem>