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{{KKCatGhazal}}
<poem>
जाने कब तक रहे ये तरतीब<ref>सिलसिला</ref>दो सितारे खिले क़रीब क़रीब<ref>पास-पास</ref>
चाँद की रोशनी से उसने लिखी
मेरे माथे पे एक बात अजीब<ref>अद्भुत</ref>
मैं हमेशा से उसके सामने थी
उसने देखा नहीं तो मेरा नसीब<ref>भाग्य</ref>
रूह तक जिसकी आंच आती है
कौन ये शोला-रु <ref>अँगारे-साए चेहरे जैसा</ref> है दिल के क़रीब
चाँद के पास क्या खिला तारा
बन गया सारा आसमान रक़ीब<ref>प्रतिद्वन्द्वी, दुश्मन,शत्रु</ref>
</poem>
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