Changes

::(३)
सीखो नित नूतन ज्ञान, नई परिभाषाएँ,
जब आग लगे, गहरी समाधि में रम जाओ।
या सिर के बल हो खड़े परिक्रम में घूमो,
ढब और कौन हैं चतुर बुद्धि-बाजीगर के?
गाँधी को उल्टा घिसो, और जो धूल झरे
उसके प्रलेप से अपनी कुंठा के मुख पर
ऐसी नक्काशी गढ़ो कि जो देखे, बोले,
"आखिर बापू भी और बात क्या कहते थे?"
 
डगमगा रहें हों पाँव, लोग जब हँसते हों,
मत चिढ़ो, ध्यान मत दो इन छोटी बातों पर।
कल्पना जगद्गुरुता की हो जिसके सिर पर
वह भला कहाँ तक ठोस कदम धर सकता है?
 
औ’ गिर भी जो तुम गये किसी गहराई में,
तब भी तो इतनी बात शेष रह जाएगी?
यह पतन नहीं, है एक देश पाताल गया
प्यासी धरती के लिए अमृत-घट लाने को।
</poem>
Delete, KKSahayogi, Mover, Protect, Reupload, Uploader
19,393
edits