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{{KKRachna
|रचनाकार=रामधारी सिंह 'दिनकर'
|संग्रह=धूप और धुआँ / रामधारी सिंह "दिनकर"
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<poem>
पर्वत पर, शायद, वृक्ष न कोई शेष बचा,
धरती पर, शायद, शेष बची है नहीं घास;
उड़ गया भाप बनकर सरिताओं का पानी,
बाकी न सितारे बचे चाँद के आस-पास ।