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चाह / जया जादवानी

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|रचनाकार= जया जादवानी
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<poem>
ज़रा-सा छुओ तो
पूरा छूने की चाह
एक चिन्गारी से
दहकता है जंगल

अंजुरी भर पियो तो
समुद्र चाहिए पूरा
पृथ्वी पूरी, पूरा सूर्य
सिर्फ़ ज़रा-सी उड़ान और
आसमाँ चाहिए पूरा

न पीने को, न जीने को
चाहिए ख़ुद को डुबोने को।
</poem>