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11:53, 24 नवम्बर 2009 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=लाल्टू
|संग्रह=
}}
<poem>जो नियमित हैं उनका अनियम।
जो संतुलित उनका असंतुलन।
जो स्पंदित हैं उनकी जड़ता
जो सरल उनकी जटिलता।
जो इसलिए मेरे साथ कि मैं उनके गाँव का हूँ
या दूर के रिश्ते का भाई या चाचा हूँ
उनकी सरलता।
जो वाहवाही करते हैं उनकी चैन की नीद
बिना नमक की दाल में ज्यादा पड़ा हींग।
</poem>