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Kavita Kosh से
अब मेरे किए मलूल<ref>चिंतित</ref>थी तू
कहने को वो ज़िंदगी का लम्हा<ref>क्षण</ref>
पैमाने-वफ़ा <ref>वफ़ादारी के वचन</ref> से कम नहीं था
माज़ी <ref>अतीत</ref> की तवील<ref>लंबी</ref> तल्ख़ियों<ref>कड़वाहटों </ref> का!