भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हरिवंशराय बच्चन }} अब अर्द्धरात्रि है और अर्द्…
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=हरिवंशराय बच्चन
}}


अब अर्द्धरात्रि है और अर्द्धजल बेला,

अब स्‍नान करेगा यह जोधा अलबेला,

लेकिन इसको छेड़ते हुए डर लगता,

यह बहुत अधिक

थककर धरती पर

सोता।


क्‍या लाए हो जमुना का निर्मल पानी,

परिपाटी के भी होते हैं कुछ मानी,

लेकिन इसकी क्‍या इसको आवश्‍यक्‍ता,

वीरों का अंतिम

स्‍नान रक्‍त से

होता।


मत यह लोहू से भीगे वस्‍त्र उतारो

मत मर्द सिपाही का श्रृंगार बिगाड़ो,

इस गर्द-खून पर चोवा-चंदन वारो

मानव-पीड़ा प्रतिबिंबित ऐसों का मुँह,

भगवान स्‍वयं

अपने हाथों से

धोता।
195
edits