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औरत-13 / चंद्र रेखा ढडवाल

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  '''(औरत -तेरह)''' 
खिले हुए
सुन्दर फूलों की मिल्कियत
दंभ उसका
पीले कमज़ोर
हो तो पराजितमुँह चुराते नाराज़वह
रंग गंध के मेलों का
सिरजनहारसिरजनहारापालक दृष्टा प्रभावपुरुष
और दोनों ही के लिए
खाद -पानी हो-मिट्टी होतीखिलते खिलने में खिलती कममुर्झाने में मुर्झाती ज़्यादा औरत. 
</poem>