भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= हसरत मोहानी }} [[category: ग़ज़ल]] <poem> हाले-मज़बूरिए-दिल<ref…
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार= हसरत मोहानी
}}
[[category: ग़ज़ल]]
<poem>
हाले-मज़बूरिए-दिल<ref >दिल की मजबूरी की हालत</ref> की निगराँ<ref >देखने वाली</ref> ठहरी है
देखना वह निगहे-नाज़ कहाँ ठहरी है

यार बे-नामो-निशाँ था सो उसी निस्बत से
लज़्ज़ते-इश्क़ भी बे-नामो-निशाँ ठहरी है

ख़ैर गुज़री कि न पहुँची तेरे दर तक वर्ना
आह ने आग लगा दी है जहाँ ठहरी है

दुश्मने-शौक़ कहे और तुझे सौ बार कहे
इसमें ठहरेगी न 'हसरत' की ज़बाँ ठहरी है


{{KKMeaning }}

</poem>